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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: ‘ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं’ वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले पर सुनवाई से इनकार!

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के ‘ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं’ वाले फैसले पर सुनवाई से किया इनकार, वकील को दी सख्त सलाह! ⚖️

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक विवादित फैसले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें कोर्ट ने एक नाबालिग पीड़िता के ब्रेस्ट को छूने और पायजामे के नाड़े तोड़ने को रेप या रेप की कोशिश नहीं माना था। इस फैसले को लेकर कई सवाल उठ रहे थे, और इसके खिलाफ एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को न सुनने का फैसला किया और वकील को ‘लेक्चरबाजी’ से बचने की सलाह दी।

क्या था विवादित इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला? 🧐

यूपी के कासगंज में साल 2021 में पवन और आकाश नाम के दो युवकों पर आरोप लगे थे कि उन्होंने एक नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट को छुआ और उसके पायजामे के नाड़े तोड़े। दोनों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (Rape) और POCSO Act (Protection of Children from Sexual Offences) के तहत केस दर्ज हुआ था।

हालांकि, इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मार्च 2025 को दिए अपने फैसले में इसे रेप या रेप की कोशिश नहीं माना। जस्टिस राम मनोहर मिश्रा की बेंच ने कहा कि यह अपराध गंभीर यौन हमला है, लेकिन IPC की धारा 354(B) और POCSO Act की धारा 9(m) के तहत आता है, और इसकी सजा रेप से कम है। कोर्ट ने कहा कि रेप की कोशिश का मतलब केवल तैयारी से ज्यादा होना चाहिए, इसमें अपराध करने की मजबूत मंशा दिखनी चाहिए।

इस फैसले की आलोचना हुई, और इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई थी, जिसमें कोर्ट से मांग की गई थी कि वो इस विवादित हिस्से को हटा कर रिकॉर्ड में सुधार करें।

सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख! 🛑

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Credit: tosshub

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान, जब याचिकाकर्ता के वकील ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना का हवाला दिया, तो जस्टिस बेला त्रिवेदी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि वकील इस तरह के मुद्दों पर ‘लेक्चरबाजी’ नहीं करें। इसके बाद जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि वे इस पर सुनवाई के मूड में नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया इस मामले पर फैसला नहीं? 🤷‍♂️

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस बात को दर्शाता है कि कोर्ट ने विवादित टिप्पणियों को लेकर कोई कदम नहीं उठाया। याचिका में यह भी मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दे, ताकि इस फैसले को रिकॉर्ड से हटा कर सुधार किया जा सके। हालांकि, कोर्ट ने इस पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले की आलोचना क्यों? 📣

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह फैसला कई सामाजिक और कानूनी संगठनों के लिए चिंता का कारण बना था। आरोपियों के खिलाफ अपराध गंभीर था, और यह सवाल उठ रहा था कि क्या ऐसे अपराधों को हल्के रूप में लिया जा सकता है।

इस फैसले ने पीड़िता और उसके परिवार के संघर्ष को और बढ़ा दिया था, क्योंकि यह केस पूरी तरह से यौन हिंसा के खिलाफ समाज में मजबूत संदेश भेजने का था।

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क्या है आगे की संभावना? 🔮

इस फैसले के बाद, विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर याचिका दायर की जा सकती है, या फिर इस मुद्दे पर नये दिशा-निर्देश जारी हो सकते हैं। इसके साथ ही, समाज में इस तरह के मामलों में सजा की सख्ती की जरूरत भी महसूस हो रही है।

मुख्य बिंदु:

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट का विवादित फैसला, जिसमें ‘ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं’ कहा गया, सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

  • सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार किया और वकील को ‘लेक्चरबाजी’ से बचने की सलाह दी।

  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह मामला रेप के बजाय IPC धारा 354(B) और POCSO Act की धारा 9(m) के तहत माना था।

  • यह फैसला महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के सख्त खिलाफ कानूनों के परिप्रेक्ष्य में आलोचना का शिकार हुआ था।

अस्वीकरण:

यह लेख केवल जानकारी देने और समाज में महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से लिखा गया है। हम किसी भी पक्ष या व्यक्ति की भावनाओं को आहत करने का इरादा नहीं रखते। इस मामले में कोई भी विचार या टिप्पणी हमारे व्यक्तिगत दृष्टिकोण नहीं हैं, बल्कि यह समाज की वर्तमान स्थिति और कानूनी निर्णयों के आधार पर आधारित हैं। हम सभी से अपील करते हैं कि वे अपनी राय व्यक्त करते समय संवेदनशीलता और सम्मान बनाए रखें। 🙏

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निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसले पर सुनवाई से इनकार करना, यह दर्शाता है कि न्याय व्यवस्था की दिशा में अभी कई पहलुओं पर विचार और सुधार की आवश्यकता है। महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा से जुड़े मामलों में सख्त और स्पष्ट कानूनी प्रावधानों की जरूरत है। यह मामला समाज में संवेदनशीलता और न्याय के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में ऐसे फैसलों पर और अधिक गंभीरता से विचार किया जाएगा ताकि कानून सच्चे मायनों में हर पीड़ित को न्याय दिला सके। ✨

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